मुगल साम्राज्य का विघटन 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा.
जिसमें औरंगजेब की मृत्यु (मार्च 1707 ई.) एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु माना आता है। औरंगजेब की मृत्यु के बाद आने वाले बावन वर्षों में आठ सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर आरूढ़ हुए। इस दौर में भारत के विभिन्न आगों में देशी एवं विदेशी शक्तियों ने अनेक क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना की। यद्यपि मुगल सम्राज्य का विघटन एक दीर्घ प्रक्रिया का परिणाम
था, फिर भी कुछ कारणों का निम्नवत् उल्लेख किया जा सकता है-
उत्तरवर्ती मुगल शासकों का राजनीतिक रूप से कमज़ोर होना।
उत्तराधिकार के एक निश्चित कानून का अभाव। जिसके परिणामस्वरूप
उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष हुए।
• एक स्थिर केन्द्रीय प्रशासन का अभाव। मुगल दरबार में गुटबंदी।
औरगंजेब द्वारा अपनाई गई धार्मिक एवं दक्कन नीतियाँ। औरंगजेब की धार्मिक नीति ने राजपूतों, सिखों, जाटों और मराठों में असंतोष पैदा किया।
• नादिरशाह, अहमदशाह अब्दाली जैसे विदेशी आक्रांताओं ने भी मुगल साम्राज्य को कमजोर किया।
निरंतर युद्ध, कृषि में विकास की गति का स्थिर होना, और व्यापार एवं उद्योग में ह्रास आर्थिक पतन का कारण बना।
उत्तरवर्ती मुगल शासक
बहादुरशाह प्रथम (1707-1712 ई.)
औरंगजेब ने अपनी वसीयत में अपने तीन पुत्रों मुअज्जम, मुहम्मद आजम और मुहम्मद कामबक्श को शांतिपूर्वक साम्राज्य का विभाजन कर लेने का निर्देश दिया था। परंतु उसकी मृत्यु के बाद तीनों भाईयों में राजसिंहासन के लिये युद्ध छिड़ गया। तीनों भाईयों में मुअज्जम उस समय काबुल का शासक था, आजम गुजरात का तथा सबसे छोटा कामबख्श बीजापुर का शासक था । उत्तराधिकार के युद्ध में मुअज्जम ने 'जाजी' और 'हैदराबाद' के युद्ध में क्रमश: आजम और कामबख्श को पराजित कर राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया और बहादुरशाह प्रथम के नाम से तख्त पर बैठा।उसने हिन्दू राजाओं एवं सरदारों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई। उसने अजीत सिंह (मारवाड़ का राजा) एवं मानसिंह (आमेर का राजा) को राज्य वापस कर क्रमशः गुजरात एवं मालवा की सूबेदारी दी। मराठों के संबंध में उसकी नीति स्पष्ट नहीं रही। सर्वप्रथम उसने शिवाजी के पौत्र शाहू को, जो 1689 से मुगलों के पास कैद था
मुक्त कर दिया। लेकिन उसने शाहू को विधिवत छत्रपति भी नहीं माना। दक्कन में उन्हें सरदेशमुखी का अधिकार दिया गया परन्तु चौथ का अधिकार नहीं दिया।
• उसने सिखों के संबंध में 'पुरस्कार एवं दण्ड नीति अपनाई। एक तरफ उसने गुरू गोविंद सिंह को 5000 का मनसब दिया वहीं दूसरी तरफ उसने गुरू गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद बंदा बहादुर को 1711 ई. में लौहगढ़ के किले पर पराजित किया किंतु पूर्णतः दमन नहीं कर सका। बंदाबहादुर ने 1712 ई. में लौहगढ़ पर पुनः कब्जा कर लिया। मुगलों ने सरहिन्द को 1711 में पुनः जीत लिया परन्तु यह सब होते हुए भी बहादुरशाह सिखों को मित्र नहीं बना सका और न ही कुचल सका।
बहादुरशाह के काल में जजिया वसूल किया जाता रहा, परन्तु शाही सेवा करने वाले व्यक्तियों से जजिया वसूल नहीं किया जाता था। उसके समय जागीर देने की प्रक्रिया जारी रही। यद्यपि वह औरंगजेब
की तरह धर्मान्ध नहीं था।
• 27 फरवरी, 1712 को बहादुरशाह की मृत्यु, बंदाबहादुर के विरूद्ध एक सैन्य अभियान में हो गई।
जहाँदार शाह (1712-1713 ई.)
जहाँदारशाह उत्तराधिकार के युद्ध में अपने भाई अजीम उस शान. रफी-उस-शान और जहान शाह की हत्या कर शासक बना। वह ईरानी दल के नेता खाँ की सहायता से शासक बना था। अतः उसने जुल्फिकार खाँ को 'वजीर' का पद तथा उच्च मनसब प्रदान किया। जुल्फिकार खाँ दक्षिण का सूबेदार भी बना रहा। वहाँ का प्रशासन चलाने हेतु उसने दाऊद खाँ को नायब सूबेदार नियुक्त करवाया। जहाँदार शाह ने जुल्फिकार खाँ तथा असद खाँ के परामर्श से जजिया कर का अंत कर दिया। जहाँदारशाह ने राजपूतों के प्रति सहिष्णु नीति अपनाते हुए आमेर के राजा सवाई जयसिंह को 'मिर्जा' की उपाधि के साथ मालवा का सूबेदार बनाया। वहीं मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को 'महाराजा की उपाधि के साथ गुजरात का सूबेदार बनाया। जहाँदारशाह ने मराठों को दक्कन में 'चौथ' और 'सरदेशमुखी' का अधिकार सशर्त दे दिया इन करों की वसूली मुगल अधिकारियों द्वारा की जानी थी। इसके अतिरिक्त ■ राजाराम के पुत्र शिवाजी द्वितीय को मनसब भी प्रदान किया। जुल्फिकार खाँ ने जागीरों एवं ओहदों की अधाधुंध वृद्धि पर अंकुश लगाकर वित्तीय स्थिति सुधारने की कोशिश को जुल्फिकार खाँ ने 'इजारा' नामक भू-राजस्व पद्धति की शुरूआत की। जिसके 7 तहत भू-राजस्व वसूलने का कार्य ठेके पर (नीलामी) दिया जाता था।फर्रुखसियर (1713-1719 ई.)
• फर्रुखसियर, अजीम उस शान का पुत्र था। वह सैय्यद बंधुओं-अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ बराहा की सहायता से शासक बना। सैय्यद बंधु, हिन्दुस्तानी गुट के अमीर थे। • फर्रुखसियर ने अब्दुल्ला खाँ को 'वजीर' और हुसैन अली को 'मीर बख्शी' नियुक्त किया। सैयद बंधु, इतिहास में 'राजा बनाने वाले' (Kingmakers) के नाम से प्रसिद्ध हैं। • फर्रुखसियर के शासनकाल में जजिया कर एवं तीर्थयात्रा कर हटा दिये गए। • राजपूतों को प्रभावशाली ओहदे दिए गए किंतु उसने जोधपुर के शासक अजीत सिंह के विरूद्ध अभियान कर उसे पराजित किया। 1751 ई. में उसने सिख नेता बंदाबहादुर को लौहगढ़ के युद्ध में पराजित कर मार डाला। • फर्रुखसियर ने सैय्यद बंधुओं की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर उनके विरूद्ध षड्यंत्र करना शुरू किया। अतः सुरक्षात्मक दृष्टि से सैय्यद बंधुओं ने 1719 में पेशवा बालाजी विश्वनाथ से 'दिल्ली को संधि' की। जिसके तहत मराठे मुगल साम्राज्य के सत्ता संघर्ष में सहयोग के लिए सहमत हुए। कालांतर में सैय्यद बंधुओं ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ, मारवाड़ के अजीत सिंह के सहयोग से 19 जून 1719 को फर्रुखसियर को सिंहासन से पदस्थ कर हत्या करवा दी। • 1717 में फर्रुखसियर ने ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को व्यापारिक रियायतें देते हुए बिना सीमा शुल्क के बंगाल के रास्ते व्यापार का अधिकार दिया। फर्रुखसियर की मृत्यु के बाद सैय्यद बंधुओं ने एक के बाद एक रफी-उद्-दरजात एवं रफी-उद-दौला को शासक बनाया।मुहम्मदशाह (1719-1748 ई.)
• रफी-उद-दौला का पुत्र रोशन अख्तर अपने पिता की मृत्यु के बाद मुहम्मदशाह के नाम से शासक बना। • मुहम्मदशाह ने तुरानी अमीर निजामुलमुल्क की सहायता से षड्यंत्र करके हुसैन अली एवं अब्दुल्ला खाँ की हत्या करवा दी। • 1722 ई. में मुहम्मदशाह ने निजामुलमुल्क को वजीर नियुक्त किया। उसने मुहम्मदशाह को उचित परामर्श देने की कोशिश की परंतु उसकी बात नहीं मानी गई। सम्राट की शंकालु प्रवृत्ति और दरबारी षड्यंत्रों से परेशान होकर निजामुलमुल्क ने दिल्ली छोड़ दिया और 1724 में उसने स्वतंत्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की। • मुहम्मदशाह के शासनकाल में मुर्शीदकुली खाँ ने बंगाल, सआदत खाँ ने अवध, बदनसिंह ने भरतपुर तथा मथुरा आदि में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की। • 1739 ई. ईरान के शासक नादिरशाह का आक्रमण मुहम्मदशाह के शासनकाल की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। 13 फरवरी, 1739 ई. में करनाल में हुए इस युद्ध में मुगल सेना बुरी तरह से पराजित हुई। • युद्ध के पश्चात निजामुलमुल्क ने 50 लाख रूपये हर्जाने के रूप में देकर नादिरशाह को वापस जाने के लिये सहमत कर लिया था, लेकिन सआदत खाँ ने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वता के कारण नारिदशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने की सलाह दी। परिणामत: नादिरशाह 20 मार्च, 1739 को दिल्ली पहुँचा। दिल्ली में 57 दिन रूकने तथा व्यापक स्तर पर लूट-पाट के बाद वह वापस चला गया। जाते समय वह 'तख्त-ए-ताऊस' (शाहजहाँ द्वारा निर्मित) एवं 'कोहिनूर' हीरा भी ले गया। नादिरशाह ने वापस जाते समय मुहम्मद शाह को पुनः मुगल सम्राट घोषित कर संपूर्ण अधिकार प्रदान कर दिये।अहमदशाह (1748-1754 ई.)
• मुहम्मदशाह के बाद अहमदशाह शासक बना। उसने अवध के सूबेदार सफदरजंग को वजीर नियुक्त किया। • अहमदशाह के समय अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किये। • अब्दाली ने भारत पर कुल सात बार (1748 से 1767 के बीच) आक्रमण किये। • मराठा सरदार मल्हारराव के सहयोग से इमादउल्मुक, सफदरजंग को अपदस्थ कर मुगल साम्राज्य का वजीर बन गया। इमादउलमुल्क मराठों के सहयोग से अहमदशाह के स्थान पर अजीजुद्दीन को आलमगीर द्वितीय की उपाधि के साथ शासक बनाया।आलमगीर द्वितीय (1754-1759 ई.)
आलमगीर द्वितीय एक अशक्त शासक था। वजीर इमाद उलमुल्क ने इसकी हत्या कर अलीगौहर को शासक बनाया।शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ई.)
• अलीगौहर ने शासक बनने पर 'शाहआलम द्वितीय' की उपाधि ली। • शाह आलम द्वितीय के समय 1764 ई. में बक्सर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज़ों ने बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल शासक शाह आलम के संयुक्त गठबंधन को पराजित किया। इसी युद्ध के उपरांत सन् 1765 ई. में शाह आलम और अंग्रेज़ों के मध्य इलाहाबाद की संधि हुई। • 1780 में रूहेला सरदार गुलाम कादिर ने सम्राट को अंधा कर दिया तथा 1806 में शाहआलम की हत्या कर दी गई। "अकबर द्वितीय (1806-1837 ई.)
• यह शाहआलम द्वितीय का पुत्र था। • अंग्रेज़ों के संरक्षण में बादशाह बनने वाला प्रथम मुगल शासक था।बहादुरशाह द्वितीय (1837-1862 ई.)
• यह अंतिम मुगल सम्राट था। इसके समय 1857 का विद्रोह हुआ। 1857 के विद्रोह में विद्रोहियों का साथ देने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें लाल किले से गिरफ्तार कर रंगून निर्वासित कर दिया जहाँ 1862 में उनकी मृत्यु हो गई। • वह 'जफर' के उपनाम से शायरी लिखते थे।Modern india notes in pdf (hindi) for ras and ias exam most importent topic uttar varti mugal (उत्तरवर्ती मुगल)
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