उत्तरवर्ती मुगल (1707- onward.)
उत्तरवर्ती मुगलो से तातपर्य भारतीय इतिहास के उस काल खण्ड मे जो महान गुगलो की परंपरा के पश्चात से आरंभ होता है और मुगल सत्ता के अंत तक जारी रहता है।
अध्ययन की सुविधा के दृष्टि कोन से पूरे मुगल काल को दो भागो मे विभाजित किया जाता है - आरंभिक मुगल (1526 -01707) और उत्तरवती' मुगल (1707-1857)
* आरंभिक मुगलो को महान मुगल भी कहा जाता है इस परंपरा मे बाबर से औरंगजैब तक 6 शासको के लेकर कालखण्ड तक लिया जाता. है।
इन शासको का कालखण्ड मध्यकालीन इतिहास का भारतीय एक भाग है
जबकि उत्तरवर्ती मुग़ल आधुनिक भारतीय इतिहास का एक भाग है। उस कालखंड मे बहादुरशाह प्रथम से बहादुर शाह II (जफर) तक के शासन काल तक लिया जाता है
बहादुर शाह प्रथम से से लेकर बहादुर सह द्वितीय तक शासन जिसमे कुल ग्यारह आसको नै शासन किया
बादशाह आलमगीर,( औरंगजेब, के, उत्तराधिकारी )1707 ऑनवर्ड
बादशाह औरंगजेब के पाँच पुत्र थे। इसमें से दो पुत्रो मोहम्मद सुल्तान, और अकबर की मृत्यु उनके जीवनकाल में ही हो गई थी
शेष 3 पुत्र मुअज्जम आज़म, कामबक्स जीवित थे।
- औरंगजेब ने उत्तराधिकार के लिए होने वाले सम्भावित उत्तराधिकारी संघर्ष को चलने के लिए सल्लतनत- ए. मुगलिया को अपने तीन जीवित पुत्रो मे बाटे दिया।
बादशाह अकबर ने सल्तनत-ए- मुलिया को प्रांतों में विभाजित किया था। जो खुबा कहलाता था। अकबर के समय कुल 15 सूबे थे जो औरंगजेब के शासनकाल मे बड़कर 21 हो गय उसमे से 15 सूबे उत्तर भारत मे और 06 सूबे दक्कन में अवस्थित थे। ओरंगजेब ने अपनी मृत्यु से पूर्व एक वसीयत के द्वारा अपने सबसे बड़े पुत्र मुअज्जम को 12 सूबे प्रदान किये जिसकी राजधानी दिल्ली होती थीं। आजम 'को 8 सूबे प्रदान किया जिसकी राजधानी आगरा होनी थी। सबसे छोटे पुत्र कामबरस को बीजापुर और हैदराबाद का क्षेत्र प्रदान किया जिसकी राजधानी औरंगाबाद / अहमदनगर होती थी।
तैमूरी राजकुमार कभी भी सत्ता, साझेदारी पसंद नहीं करते थे इसलिए उनके बीच संघर्ष तय था। औरंगजेब की मृत्यु के समय मुअज्जम जमरुद (अफगानिस्तान), आजम अहमदनगर में, और कामबक्स बीजापुर था। औरंगजेब की मृत्यु (मार्च 1707) की खबर मिलते ही मुअज्जम और आजम ने अपने को बादशाह घोषित करते :- हुए राजधानी दिल्ली और आगरा की और बढ़े मुअज्जम ने आजम के समक्ष राम्राज्य विभाजन का प्रस्ताव रखा जिसे आजम ने अस्वीकार का दिया।
* जाजऊ की लड़ाई (18 जून 1707)
मुअज्जम और आजम के बीच जब कोई समझौता नही हो पाया तो अंतत: दोनो पालो के बीच आगरा के समीप जाजऊ नामक स्थानपर निर्णायक संघर्ष हुआ। उसमे आजम अपने दो पुत्रो सहित पराजित हुआ और मारा गया। राजकुमार मुअज्जम विजेता ने बहादुरशाह प्रथम के नाम से स्वयं को शासक घोषित कर दिया। बन जाने के बावजूद कामबस ने उसकी बहादुरशाह प्रथम के शासक सत्ता स्वीकार नहीं को अत: इन दोनो पक्षो के बीच एक संघर्ष अनिवार्य हो गया अंततः दोनो पक्षो के बीच बीजापुर मे एक संघर्ष हुआ जो बीजापुर की लड़ाई या हैदराबद की लड़ाई के नाम से जाना जाता है (1709) उस लड़ाई में कामबक्स पराजित हुआ और मारा गया इस प्रकार दिल्ली कोर गद्दी पर बहादुर शाह प्रथम की सत्ता । स्थापित हो गई।
राजकुमार मोहम्मद सुल्तान और मोहम्मद अकबर
बादशाह शाहजहां की बिमारी के पश्चात जो उत्तराधिकारी संघर्ष आरंभ हुआ उनमे दक्कन के सूबेदार औरंगजेब ने जब आगरा पर नियंत्रण कर लिया तो उसने अपने पुत्र मोहम्मद सुल्तान को एक सैनापत्ति मीर जुमला के साथ बंगाल अभियान पर भेजा जहा औरंगजैव का भाई (शाह सृजा) शासन कर रहा था। अभियान के बीच ही साहसूजा की बेटी / उत्री से प्रेम करने और विवाह की तैयारी करने लगा। इसलिए आरंगजेब ने उसे बंदी ग्रह मे डाल दिया और कैदखाने मे ही सोलह वर्ष के पश्चात् मृत्यु हो गई।
- औरंगजेब ने अपने पुत्र अकबर को राजपूत शक्ति के दमन के लिए जौधपुर अभिमान पर भेजा (1679) इसी अभियान के दौरान वह राठौड सरदार दुर्गादास राठौड़ के साथ मिलकर बादशाह को ही सत्ता से अपदस्थ | करने का प्रयास किया। लेकिन प्रयास असफल रहा।
दुर्गादास के अकबर को छत्रपति शम्भाजी के संरक्षण मे भेज दिया औरंगजेब के दक्कनी अभियान के दौरान (1683) अकबर मराठवाड से पलायन कर गया और भारत के पश्चिमी भाग से ईरान पालयन कर गया।
बहादुरशाह प्रथम 1707 - 1712
बादशाह औरंगजेब का जेष्ठ पुत्र : मुअज्जम
शाह आलम I
शाह-ए-बेखबर (ख़फ़ी खा द्वारा दिया गया नाम)
बहादुर सह प्रथम एक विद्वान् आत्मगौरव से परिपूर्ण और सहिष्णु शासक था उसने भारतीय क्षेत्रीय शासको के साथ समझौते और मेलमिलाप की नीति अपनाई । उसने औरंगजेब द्वारा अपनाई धार्मिक असहिष्णुता की नीति छोड़कर सहिष्णुता की नीति • अपनाइ यहि यहां कारण है की उसके शासनकाल मे एक भी गंभीर किस्म को विद्रोह नही हुआ ।
राजपूतों के प्रति नीति
आमेर
बादशाह में जयसिंह द्वितीय के छोटे भाई विजय सिंह को शासक बनाने का प्रयास किया इस आफलता के पश्चात उसने जयसिंह ।। को आमेर का. राजा स्वीकार कर लिया लेकिन मालवा की सूबेदारी का दावा स्वीकार नही की किया।
जोधपुर
बादशाह मे जाँधपुर पर सैनिक नियंत्रण स्थापित करने का असफल प्रयास किया इस प्रयास में असफल्ता मिलने पर उसने अजित सिंह को जौधपुर का राजा स्वीकार कर लिया। लेकिन उनकी गुजरात की सुबेदारी का दावा स्वीकार नहीं किया।
मराठो के प्रति दृष्टिकोण
बादशाह ने मराठो के प्रति उपरी तौर पर मैल कि निति अपनाई और एक कूटनीति के तहत साहू जी (सम्भाजी के पुत्र) मुगल कैद से मुक्त कर दिया लेकिन उसे विधिवत मराठो का राजा स्वीकार नहीं किया जिससे मराठो मे सत्ता पर नियंत्रण के प्रश्न पर गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस गृह युद्ध के कारण दक्कन मे राजनीतिक अवस्था उत्पन्न हो गई जिसके कारण असंतुष्ट बने रहे। मराठो के बीच हुए उस ग्रह युद्ध में शिवाजी (संक्षिका माता बाराबार) शाहू जी से पराजित हो गये और सत्तारा से कोल्हापुर पलायन कर गये। सतारा पर साहू जी का नियंत्रण हो गया । उस प्रकार सत्तर मे मूल शाखा स्थापित हुई जबकी कोल्हापुर मे मराठो की एक शाखा स्थापित हुए
बादशाह ने मराठो को 6 दक्कनी सूबो मे सरदेशमुखी प्राप्त करने का अधिकार दे दिया परन्तु चौथ का अधिकार नहीं दिया'
सिखों के प्रति वृद्धिद दृष्टि-कोण
बादशाह ने सिखों के प्रति पुरस्कार एवं दृण्ड की नीति अपनाई। उन्होंने 10वे गुरु गोविंद सिंह के साथ मेल-मिलाप की नीति अपलाते हुए उन्हें 5000 की मनसबदारी प्रदान कर दी लेकिन शीघ्र ही नादेड. ((1708) में गुरु की हत्या हो गई और उनके उत्तराधिकारी बंदाबहादुर ने मुगलो द्वारा किये जा रहे धर्मंत्रण के विरोध मे पंजाब मे विद्रोह कर दिया। बादशाह ने स्वयं इस विद्रोह को दबातें हुए लौहगढ़ को जीत लिया, (1711)
लेकिन अगले ही वर्ष बंदाभादुर ने लौहगढ़ को पुनः जीत लिया 1712 इससे मुगल सिख संघर्ष चलता रहा।
लौहगढ़ का किला
लौहगढ़ का किला गुरुगोविंद सिंह ने अम्बाला के उत्तर-पूर्व मे हिमालय की नगरी मे बनाया था एक शक्तिशाली किया था। जिसपर दोनो ही पक्ष निमंत्रण करना चाहते थे।
बुंदेलो के प्रति दृष्टिकोण
बुंदेला सरदार छत्रशाल से बादशाह ने मेलमिलाप की नीति अपनाई इसलिए छत्रशाल एक निष्ठावान सामंत बना रहा।
जाटो के प्रति नीति
बादशाह ने जाट सरदार चुरामन जाट से मेल-मिलाप की नीति अपनाई यही कारण है की चूरामन ने बंदा बहादुर के खिलाफ होने वाले अभियान मे बादशाह का साथ दिया था
जागीर व्यवस्था
बादशाह ने पहले की तरह जागीर देने की परंपरा जारी रखी उससे राज्य की वित्तम स्थति और अधिक खराब हो गई।
राजकीय खजाना
औरंगजेब से मृत्यु के समय (1707) मे केवल 13 करोड़ रुपये को थे और यह रकम भी बहादुरशाह के शासनकाल के अंत तक समाप्त हो गई।
जजीया कर
पहले की तरह जजिया कर वसूल किया, जाता रहा परन्तु शाही सेवा करने वाले व्यक्तियों को उससे छूट प्रदान कर दि गई ।
अमीर वर्ग
बादशाह बहादुरशाह 1 के शासन काल मे अमीर वर्ग कई भागो मे विभाजित हो गये। जिसमे तीन प्रमुख वर्ग थे 'ईरानी -वैसे अमीर जो स्वयं या उनके पूर्वज ईरान (प. एशिया) से भारत आये थे। इस गुट का नेतृत्व जुल्फिकार खाँ जैसे लोग कर रहे थे।
( तुरानी- वैसे अमीर जो स्वयं या जिनके पूर्व तुर्कमेनिस्तान मध्य ऐशिया) से आये थे ।
उस गुट का नेतृत्व चिनकिलियाँ जैसे नेताओं के हाथ मे था।
हिन्दुस्तानी इस गुट मे भारतीय मूल के
मुसलमान थे अर्थात वे नवप्रवृति मुसलमान थे। उसमे अफगानिस्तानी भी शामिल थे क्योकि उस समय अफगानि भारत का हिस्सा था। उस गुट का नेतृत्व सैयद बंधू जैसे नेताओ के हाथ मे था।
बहादुरशाह
एक सिया मुस्लमान थे जानिए उनका झुकाव ईरानी गुट की और था महि कारण था है की उनकी मृत्यु के पश्चात जुल्फिकार खाँ की मदद से उनका एक कम योग्य पुत्र जहाँदार मुगल बादशाह बन गया। टिप्पणी
मुगल सम्रारो मे बहादुर शाह = अंतिम सम्राट था जिसके संदर्भ मे कुछ शब्द कहे जा सकते हैं। अच्छे
इतिहासकार सिडनी औबन