भू-आकृतिक प्रदेश
भारत एक विशाल भू-भाग है, जिसका निर्माण विभिन्न भूगर्भीय कालों के दौरान हुआ है। भूगर्भीय निर्माणों के अतिरिक्त इस विशाल भू-भाग पर अपक्षय, अपरदन तथा निक्षेपण की क्रियाओं का प्रभाव है। अति प्राचीन संरचना होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार काफी अपरदित हो चुका है, जहाँ काफी अवशिष्ट पर्वतों की अवस्थिति है। नवीन मोड़दार पर्वत होने के कारण हिमालय पर्वत का उच्चावच अति विषम है। विश्व की सर्वोच्च चोटी एवरेस्ट तथा विश्व का सबसे गहरा गॉर्ज बुजी यहीं स्थित है। नवीन निक्षेपित संरचना होने के कारण उत्तर का विशाल मैदान विश्व के सर्वाधिक समतल मैदानों में से एक है।
भू-आकृतिक प्रदेश का विभाजन(Division of Geomorphic Regions)
भारत को स्थलाकृतिक विशेषताओं की दृष्टि से पाँच भू-आकृतिक प्रदेशों में बाँटा गया है, जो निम्नलिखित हैं-
तटवर्ती मैदान (Coastal Plain)
द्वीप समूह (Group of Islands )
उत्तर भारत का पर्वतीय क्षेत्र (Mountainous Region of Northern India)
प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)
उत्तर भारत का विशाल मैदान (Great Plain of North India)
उत्तर भारत का पर्वतीय क्षेत्र (Mountainous Region of Northern India)
यह विश्व की सर्वोच्च पर्वतीय स्थलाकृति है, जिसका विस्तार भारत-पाक सीमा से भारत-म्यांमार सीमा तक लगभग 2500 किमी. की लंबाई में है। इस संपूर्ण पर्वतीय प्रदेश का क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी. है। इस पर्वतीय प्रदेश को तीन भागों में विभाजित किया गया है-
1. ट्रांस हिमालय श्रेणी
2. हिमालय पर्वत श्रेणी
3. पूर्वांचल की पहाड़ियाँ
ट्रांस हिमालय श्रेणी (The Trans Himalaya Range)
ट्रांस हिमालय श्रेणी हिमालय के उत्तर में स्थित है तथा हिमालय की तुलना में पुरानी है। इसके अंतर्गत काराकोरम, लद्दाख तथा जास्कर श्रेणी को सम्मिलित किया जाता है। ट्रांस हिमालय की औसत ऊँचाई 6000 मी. से भी अधिक है। भारत की सर्वोच्च चोटी गॉडविन ऑस्टिन (K2) काराकोरम श्रेणी पर ही अवस्थित है (ऊँचाई 8611 मी.)। यह विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है। काराकोरम दर्रा एवं इंदिरा कॉल काराकोरम श्रेणी पर स्थित है। काराकोरम काराकोरम श्रृंखला स्थित कश्मीर को चीन से जोड़ने वाला यह संकीर्ण दर्रा है, जो हिमाच्छादन के कारण वर्ष में 6 महीने से अधिक बंद रहता है। रणनीतिक दृष्टिकोण से यह एक महत्त्वपूर्ण दर्रा है। इस श्रेणी में भारत का सबसे लंबा ग्लेशियर सियाचिन स्थित है। काराकोरम पर्वत श्रेणी को कृष्णगिरि पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। विश्व का सर्वाधिक ऊँचा सैनिक अड्डा ‘सियाचिन’ यहीं अवस्थित है। काराकोरम श्रेणी के दक्षिण में समानांतर लद्दाख की अवस्थिति है, जिसकी औसत ऊँचाई 5800 मी. है। माउंट राकापोशी इस पर्वत का प्रमुख शिखर है। लद्दाख पठार की अवस्थिति इसी पर्वत श्रेणी में है, जो भारत का न्यूनतम वर्षा का क्षेत्र है। सिंधु नदी, लद्दाख श्रेणी को काटकर गॉर्ज बुजी का निर्माण करती है। जास्कर श्रेणी की अवस्थिति लद्दाख श्रेणी के दक्षिण में समानांतर रूप में है। कैलाश श्रेणी जास्कर श्रेणी के दक्षिण-पूर्व में अवस्थित है। इसका सर्वोच्च शिखर माउंट कैलाश है। सिंधु नदी कैलाश श्रेणी के उत्तरी किनारे से निकलती है।
हिमालय पर्वत श्रेणी (The Himalaya Range)
यह हिमालय पर्वत पश्चिम में नंगा पर्वत से लेकर पूर्व में नामचा बरवा तक धनुष की आकृति में फैला हुआ है। इन दोनों ही स्थानों पर हिमालय में दो तीखे मोड़ (Syntaxial Band) स्थित हैं। इस मोड़ का निर्माण प्रायद्वीपीय पठार की विशिष्ट आकृति एवं अरावली श्रेणी तथा शिलॉन्ग पठार के प्रक्षेपित होने के कारण हुआ है। दबाव बल की अपेक्षाकृत कम तीव्रता के कारण हिमालय का पश्चिमी भाग अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा एवं कम ऊँचा है। इस भाग में हिमालय की अनेक शाखाएँ हैं। पूर्वी भाग में दबाव के अधिक तीव्र होने के कारण हिमालय की तीनों श्रेणियाँ आपस में मिली हुई प्रतीत होती हैं। हिमालय का पूर्वी भाग न केवल सर्वाधिक ऊँचा है, बल्कि इसकी ढाल भी अधिक तीव्र है। इस पर्वत श्रेणी की ढाल असीमित है अर्थात् इसकी दक्षिणी ढाल उत्तरी ढाल की तुलना में अधिक तीव्र है।
हिमालय का निर्माण भारतीय सह-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट एवं यूरेशियाई प्लेट की अभिसरण प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ है। अभिसरण क्रिया के अंतर्गत सापेक्षतः हल्के घनत्व के यूरेशियाई प्लेट का अग्रभाग वलित हो गया, जिससे हिमालय का निर्माण हुआ। वस्तुतः इन दोनों प्लेटों का अभिसरण अभी भी जारी है, परिणामस्वरूप हिमालय अभी भी क्रमशः ऊँचा हो रहा है। यही कारण है कि हिमालयी क्षेत्र में अभी भी निरंतर भूकंप आते रहते हैं।हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-
महान हिमालय (Great Himalaya)
महान हिमालय को ‘वृहत् एवं आंतरिक हिमालय’ के नाम से भी जाना जाता है। इस श्रेणी का आंतरिक भाग अजैविक चट्टानों से बना है। उसके ऊपर की परतदार चट्टानें पूरी तरह नष्ट हो गई एवं आंतरिक भाग की अजैविक चट्टानें ग्रेनाइट, नीस एवं शिष्ट के रूप में मौजूद हैं। महान हिमालय की औसत ऊँचाई लगभग 6000 मी. है। इस श्रेणी की दक्षिणी ढाल उत्तरी ढाल की तुलना में काफी तीव्र है। एवरेस्ट, कंचनजंगा. मकालु धौलागिरि, नंगा पर्वत, नामचा बरवा आदि इसके महत्त्वपूर्ण शिखर हैं। महान हिमालय में ही भारत में हिमालय की सर्वोच्च चोटी कंचनजंगा स्थित है। यह विश्व की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है, जो सिक्किम राज्य में स्थित है। हिमालय में कई दरें एवं हिमनद अवस्थित हैं बुर्जिल, जोजिला, शिपकीला प्रमुख दरें एवं मिलान, गंगोत्री एवं जेमू प्रमुख हिमनद हैं।
मध्य/लघु हिमालय (The Lesser or Middle Himalaya)
महान हिमालय के दक्षिण में मध्य हिमालय की स्थिति है। यह श्रेणी महान तथा शिवालिक हिमालय के मध्य में अवस्थित है। इसकी सामान्य ऊँचाई 3700 से 4500 मी. के मध्य है। इसे हिमाचल श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है। यह अनेक शाखाओं में विभाजित है, जिनमें पीरपंजाल श्रेणी (जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश), धौलाधर (हिमाचल प्रदेश), मसूरी श्रेणी (उत्तराखंड) तथा नागटिब्बा (उत्तराखंड) प्रमुख हैं। मध्य हिमालय में स्थित दरें, यथा- पीरपंजाल, रोहतांग आदि हैं, जिनके द्वारा यह जम्मू-कश्मीर क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। मध्य हिमालय पर अनेक महत्त्वपूर्ण हिल स्टेशन, जैसे- डलहौजी, शिमला, नैनीताल, मसूरी, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्थित हैं। मध्य हिमालय पर स्थित घास के मैदानों को ‘मर्ग’ के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड में इन मैदानों को ‘वुग्याल या पयार’ के नाम से जाना जाता है। ये मैदान उत्तम चरागाह हैं। इस श्रृंखला की उत्तरी ढाल मंद तथा दक्षिणी ढाल तीव्र है, इसीलिये उत्तरी ढाल सापेक्षतः ज़्यादा सघन वनस्पति से आच्छादित है, जबकि दक्षिणी ढाल सापेक्षत: नग्न है। इन्हीं विशिष्ट स्थलाकृतियों के कारण इसे ‘शूकर कटक’ भी कहते हैं।
शिवालिक / उप-हिमालय (Shiwalik or Sub – Himalaya)
मध्य हिमालय के दक्षिण में शिवालिक हिमालय की अवस्थिति को उप या बाह्य हिमालय के नाम से जानते हैं। इस श्रेणी की ऊँचाई 1500 से 2000 मी. के मध्य है। इंडोब्रह्म नदी की घाटी में निक्षेपित अवसादों के वलन से शिवालिक हिमालय की उत्पत्ति हुई है। इसीलिये महान एवं मध्य हिमालय की तुलना में शिवालिक हिमालय की संरचना सापेक्षत: ज्यादा मुलायम है। शिवालिक पर्वत की चौड़ाई पश्चिम में अधिक तथा पूर्व में कम है। शिवालिक में गोल बलुआ पत्थर, चिकनी मिट्टी, चूना पत्थर आदि पाए जाते हैं। यह श्रेणी अनेक स्थानों पर विखंडित हो गई है, जिसके कारण इसकी निरंतरता भंग हो गई है। अरुणाचल प्रदेश में मिशमी, अबोर, मिरि बूम, डफला आदि इसी के विस्तार हैं।
पूर्वांचल की पहाड़ियाँ (Hills of Purvanchal)
पूर्वांचल की पहाड़ियाँ हिमालय के ही विस्तार हैं। नामचा बरवा के निकट हिमालय अक्षसंघीय मोड़ (Syntaxial Band) के कारण दक्षिण की ओर मुड़ जाता है। पटकाई, नागा, मणिपुर, लुशाई या मिजो पहाड़ी से आदि को हिमालय का ही विस्तार माना जाता है। ये पहाड़ियाँ भारत एवं है। म्यांमार सीमा पर स्थित हैं। नागा पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी माउंट सारामती तथा मिज़ो पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी ब्लू माउंटेन है। पूर्वांचल की पहाड़ियाँ काफी कटी-फटी हैं। सारामती से दक्षिण की ओर पूर्वोत्तर शृंखलाओं की से ऊँचाई क्रमशः कम होती जाती है। गारो, खासी एवं जयंतिया पहाड़ी शिलॉन्ग के पठार पर अवस्थित हैं। पूर्वांचल की पहाड़ियाँ भारतीय मानसून को दिशा प्रदान करती हैं। इस प्रकार ये पहाड़ियाँ जल विभाजक के साथ-साथ जलवायु विभाजक भी हैं।
हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण (Regional Classification of the Himalaya)
हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण नदियों के आधार पर हुआ है। प्रादेशिक वर्गीकरण को ही हिमालय का क्षैतिज वर्गीकरण कहते हैं, जो निम्नलिखित है-
• पंजाब हिमालय: जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में विस्तृत होने के कारण इसे कश्मीर हिमालय तथा हिमाचल हिमालय भी कहते हैं। यह सिंधु गॉर्ज से लेकर सतलज गॉर्ज तक 560 किमी. लंबा है। इसी में काराकोरम, लद्दाख तथा जास्कर श्रृंखला भी शामिल है।
• कुमाऊँ हिमालय: इसका विस्तार सतलज नदी के गॉर्ज से लेकर काली नदी के गॉर्ज तक 320 किमी. की लंबाई में है। यह मुख्यत: उत्तराखंड राज्य में विस्तृत है। इसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ,नंदादेवी, त्रिशूल आदि प्रमुख चोटियाँ हैं। नंदादेवी (7,817 मीटर) सर्वोच्च चोटी है। गंगा तथा यमुना का उद्गम स्थल भी इसी हिमालय में है।
• नेपाल हिमालयः इसका विस्तार काली नदी के गॉर्ज से तीस्ता नदी के गॉर्ज तक 800 किमी. की लंबाई में है। माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा तथा मकालू शिखर इसी भाग में हैं। हिमालय का सर्वाधिक ऊँचा भाग इसी हिमालय में अवस्थित है।
• असम हिमालयः इसका विस्तार तीस्ता नदी के गॉर्ज से ब्रह्मपुत्र नदी के गॉर्ज तक 720 किमी. में है। यह पूर्वी सिक्किम, भूटान तथा अरुणाचल प्रदेश में अवस्थित है।