क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना
पतनशील मुगल साम्राज्य की जर्जर अवस्था का लाभ उठाकर 18वीं शताब्दी में विभिन्न क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। इस दौरान बंगाल, अवध, हैदराबाद, कर्नाटक, मैसूर, राजपूतना, मराठा व सिख आदि क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ। एक तरफ जहाँ ये शक्तियाँ मुगल सत्ता के पतन से उपजे निर्वात को भरने और अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के लिये आपस में ही लड़ रही थीं वहीं दूसरी तरफ भारत की राजनीतिक दुर्बलता का लाभ उठा कर यूरोपीय व्यापारिक कंपनियाँ, विशेषकर अंग्रेज और फ्राँसीसी भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे।
बंगाल
मुर्शीद कुली खाँ 1717 ई. में बंगाल का सूबेदार बना। परन्तु वास्तविक सत्ता उसके हाथों में 1700 ई. में ही आ चुकी थी जब वह बंगाल का दीवान बनाया गया था। उसने बंगाल में शांति व्यवस्था कायम की। मुगल बादशाह द्वारा सीधे तौर पर नियुक्त वह बंगाल का अंतिम गवर्नर था। मुर्शीद कुली खाँ ने बंगाल में वंशानुगत शासन की शुरुआत की।
• मुर्शीद कुली खाँ ने बंगाल की राजस्व व्यवस्था को सुदृढ़ करने के
लिये निम्नलिखित कदम उठाये-
• छोटे बिचौलिये जमींदारों का उन्मूलन।
• उड़ीसा प्रांत के विद्रोही जमींदारों तथा जागीरदारों का निष्कासन । • खालिसा भूमि के क्षेत्र का अधिक से अधिक विस्तार
• उसने इजारा (ठेके पर भू-राजस्व वसूल करने की प्रथा ) व्यवस्था की शुरूआत की।
उन बड़े जमींदारों को प्रोत्साहन जो राजस्व वसूली तथा भुगतान की जिम्मेदारी लेते थे। मुर्शीद कुली खाँ ने कुछ बड़े जमींदारों को अपनी सम्पत्ति बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया। बंगाल में राजशाही, दीनाजपुर, बर्द्धमान, नादिया, बोरभूम, बिशनपुर तथा बिहार में प्रमुख जमदारियाँ विकसित हुई। उसके समय कई विद्रोह हुए:
सीताराम राय का विद्रोह
उदय नारायण का विद्रोह
गुलाम मुहम्मद का विद्रोह
सुजात एवं नजात खाँ का विद्रोह
सन् 1727 ई. में मुर्शीद कुली खाँ की मृत्यु के बाद उसका दमाद
शुजाउद्दीन 1729 में बंगाल का नवाब बना शुजाउद्दीन के पश्चात् 1739 में उसका पुत्र सरफराज खाँ नवाब बना जिसे अपदस्थ कर अलीवर्दी खाँ बंगाल का नवाब बना।
अपने पहले की नवाबों की तरह अलीयदी खाँ ने भी अपने पद की अनुशंसा मुगल दरबार से ली परंतु उसने प्रांतीय प्रशासन के सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर खुद नियुक्ति को अलीवदोंखों ने पटना, कटक, ढाका आदि में अपने पसंद के उपनवाबों को भर्ती की।
राजस्व प्रशासन की देखरेख के लिए उसने बड़ी संख्या में मुत्सद्दी .. आमिल या स्थानीय दीवान के रूप में हिन्दुओं की नियुक्त किया।
अलीवर्दी खां ने दिल्ली को वार्षिक नवराना भेजना बंद कर दिया। • अलोवद खाँ को मराठों तथा अफगान विद्रोहियों का सामना करना पड़ा मराठों ने 1742 तथा 1751 के मध्य चार बार बंगाल पर आक्रमण किए। अंतत: परेशान होकर 1751 ई. में अलीवदी खाँ न मराठों से संधि कर ली।
• 1756 ई. में अलोवद खाँ को मृत्यु के पश्चात् यद्यपि सिराजुदौला नवाब बना परंतु दरबार में उसके उत्तराधिकार पर विवाद छिड़ गया।
अवधः अवध के स्वतंत्र राज्य का संस्थापक सआदत खाँ बुरहान-उल मुल्क था। बुरहान उल मुल्क उसकी उपाधि थी जो सैय्यद बंधुओं के खिलाफ षड्यंत्र में शामिल होने तथा मुहम्मदशाह का साथ देने के में मिली थी।
सआदत खाँ अथवा बुरहान उल मुल्कः सआदत खाँ शिया मतावलंबी था तथा निशापुर के सैय्यदों का वंशज था। में वह का फौजदार नियुक्त किया गया। 1720 से 1722 ई. तक वह आगरा का गवर्नर रहा जिसका शासन उसने अपने नायव नीलकंठ नागर द्वारा चलाया। वह 1722 ई. में अवध का सूबेदार बना। उसने जमींदारों का दमन किया। 1723 में उसने नया राजस्व बंदोबस्त किया। 1739 ई. में उसने आत्महत्या कर ली। उसका उत्तराधिकारी सफदरजंग (1739-1754) हुआ। 1748 ई. में वह मुगल साम्राज्य का वजीर बना। उस समय से अवध के नवाब वजीर के नाम से जाने जाने लगे। सफदरजंग ने हेला तथा बंगश पठानों के विरुद्ध युद्ध छेड़ा। बंगश पठानों के खिलाफ 1750-1751 की लड़ाई में उसे मराठों से सैनिक सहायता तथा जाटों का समर्थन मिला। उसकी सरकार में सबसे बड़े ओहदे पर एक हिन्दू महाराजा नवाब राय आसीन था। इसका उत्तराधिकारी शुजाउद्दौला हुआ।
रूहेले तथा बंगश पठान: फर्रुखाबाद क्षेत्र में मुहम्मद खाँ बंगश ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जो मुगल साम्राज्य के पतन क कारण संभव हुआ। उसी तरह उत्तरी कुमायूँ एवं दक्षिण में गंगा नदी के बीच अली मुहम्मद खाँ ने रुहेला राज्य की स्थापना की। रूहेलों का अवध, दिल्ली और जाटों से लगातार टकराव होता रहा।
आमेर
आमेर का राज्य महत्वपूर्ण था। सवाई जय सिंह ने 1699 से 1743 ई. तक शासन किया। उसने जाटों का क्षेत्र लेकर जयपुर की स्थापना की। वह एक महत्त्वपूर्ण ज्योतिषशास्त्री, खगोलशास्त्री, गणितज्ञ एवं समाज सुधारक था। जयपुर वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार बना हुआ प्रथम शहर है। सवाई जय सिंह ने पाँच स्थलों पर वेधशालाएँ निर्मित कराईं यथा जयपुर, मथुरा, दिल्ली, उज्जैन एवं बनारस। खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए उसने एक सारणी बनाई जो जीजमोहम्मदशाही के नाम से जानी जाती है। उसने यूक्लीड के ग्रंथ का संस्कृत में अनुवाद किया। एक महत्त्वपूर्ण समाज सुधारक होने के नाते उसने राजपूतों में दहेज प्रथा को नियंत्रित करने की कोशिश की।
हैदराबाद
निजाम-उल-मुल्क ने 1724 ई. में एक पृथक हैदराबाद राज्य की स्थापना की। यद्यपि उसने औपचारिक रूप से मुगल बादशाह से स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की परंतु व्यवहारिक रूप से वह स्वतंत्र बना रहा।
कर्नाटक
यह हैदराबाद का एक सूबा था। जिस तरह निजाम उल मुल्क व्यवहार में मुगल बादशाह से स्वतंत्र हो गया। उसी तरह कर्नाटक का उप-सूबेदार सादातुल्ला खाँ भी व्यवहार में स्वतंत्र हो गया। उसने निजाम की अनुमति के बिना ही अपने उत्तराधिकारी दोस्त अली का चयन किया।
मैसूर
मैसूर का शासक चिक्का कृष्णराज था। किंतु वह नाम मात्र का शासक था। वास्तविक सत्ता उसके दो अधिकारी देवराज (दुलबई) तथा नन्जराज (सर्वाधिकारी) के हाथों में आ गई। हैदर अली मैसूर की सेना का अधिकारी था। उसने मैसूर की सेना का आधुनिकीकरण किया। उसने फ्रांसीसियों की सहायता से डिंडिगुल में आधुनिक शस्त्रागार का निर्माण
किया। 1761 ई. में उसने सत्ता हथिया ली। हैदर ने विदनुर, कनरा और मालाबार पर कब्जा कर लिया।
सुंदी, सेद्दा,
• टीपू सुल्तान जटिल चरित्र वाला और नए विचारों को ढूँढ़ निकालने वाला व्यक्ति था।
उसने नए कैलेंडर को लागू किया, माप-तौल के नए पैमाने को अपनाया तथा सिक्का ढुलाई की नई प्रणाली को अपनाया।
• टीपू ने फ्रांसीसी क्रांति में गहरी दिलचस्पी ली तथा श्रीरंगपट्टम में 'स्वतंत्रता वृक्ष' लगवाया और एक जैकोबिन क्लब का सदस्य बन गया।
उसने जागीर देने की प्रथा को समाप्त करके राजकीय आय बढ़ाने की कोशिश की। उसने पोलिगारों की पैतृक संपत्ति को कम करने और राज्य तथा किसानों के बीच के मध्यस्थों को समाप्त करने की भी कोशिश की।
केरल
धीरे-धीरे केरल के चार राज्य उदित हुए यथा कालीकट, कोचीन, = चिरक्कल और त्रावणकोर इनमें कालीकट एवं त्रावणकोर महत्वपूर्ण थे। ■ कालीकट पर जमोरीन का शासन था। त्रावणकोर में 1729 ई. के पश्चात् एक महत्त्वपूर्ण शासक मार्तण्ड वर्मा का उदय हुआ। उसने सेना का आधुनिकीकरण किया, डचों को पराजित किया और क्वीलोन एवं मलाय पर कब्जा किया। 18वीं सदी में उसका उत्तराधिकारी राम वर्मा हुआ।
राम वर्मा एक विद्वान व्यक्ति था। अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त वह और भी कई भाषाओं का ज्ञाता था। उसके समय में मलयालम भाषा का विकास हुआ। फलतः मलयालम साहित्य में पुनर्जागरण का काल आया। 1766 है में हैदर अली ने उत्तरी केरल का क्षेत्र अपने राज्य में मिला लिया।
सिख
1764 ई. में सिख समुदाय के कुछ गणमान्य सरदार अमृतसर में इकट्ठा हुए उन्होंने सिक्के दाल कर अपने संघ और पंथ के प्रभुत्तव को घोषणा की कि गुरुगोविंद ने नानक से देग तेग एवं फतेह प्राप्त की थी। उन्होंने चाँदी के सिक्के जारी किए। इसी के साथ सिख राज्य की स्थापना हुई। अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर सातवाँ एवं अंतिम आक्रमण किया परन्तु सिखों को कुचला नहीं जा सका। 1765-1800 ई. के बीच सिखों ने पंजाब और कश्मीर पर कब्जा कर लिया। सिख कुल 12 मिसल में विभाजित थे। इन बारह मिसलों के नाम निम्नांकित हैं-
1. भंगी
2. कन्हैया
3. सुकरचकिया 4. नकाई
5. फैजुल्लापुरिया
6. अहलुवालिया
7. रामगढ़िया
8. दलेवलिया
19. करोड़ासिंहिंया 10. निशालावाल
11. शहीद निहंग
12. फुलकिया
ये मिसल जनतांत्रिक पद्धति पर गठित थे। कालांतर में जनतांत्रिक तत्त्व कमजोर पड़ते गए और उनकी जगह राजतंत्र ने ले लिया। सिखों के इस संगठन को धर्मराज्यीय संघबद्ध सामंतवाद कहा गया है।
जाट
आगरा मथुरा क्षेत्र में चूड़ामन एवं बदन सिंह के नेतृत्त्व में जाट राज्य की स्थापना हुई। चूड़ामन ने (1660-1721) थुन में एक किले का निर्माण कराया। 1721 ई. में सवाई जय सिंह ने थुन के किले पर चढ़ाई की। 1722 ई. में जयसिंह ने जाटों के तात्कालिक नेता मुखमसिंह को पराजित कर थुन • के किले को जीत लिया। मूखमसिंह चूड़ामन का उत्तराधिकारी था। चूड़ामन की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। इस विजय के पश्चात् जयसिंह को मुगल बादशाह ने राजा-ए-राजेश्वर की उपाधि दी। जाटों पर जयसिंह का नियंत्रण रहे इसलिए संपूर्ण जाट क्षेत्र जयसिंह को जागीर के रूप में दिया गया। परंतु जयसिंह ने उस क्षेत्र को चूड़ामन जाट के उत्तराधिकारी बदन सिंह को जमींदारी में दे दिया। बदन सिंह ने (1721-1756) देग, भेड़, कुम्भेर एवं भरतपुर के किले निर्मित करवाये। अहमदशाह अब्दाली ने उसे राजा एवं महिन्द्रा की उपाधि दी। बदनसिंह ने ही भरतपुर राज्य की नींव रखी। 1756 ई. में सूरजमल इस राज्य का उत्तराधिकारी बना। उसे अपनी बुद्धिमत्ता के कारण जाटों का अफलातून कहा गया है। 1763 ई. में सूरजमल की मृत्यु हो गई और फिर जाट राज्य का पतन हो गया।